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कुम्भ स्नान गीता जी के विरुद्ध है।
गीता अध्याय 16 श्लोक 23, 24 में कहा गया है कि शास्त्र विरुद्ध साधना से कोई लाभ नहीं होता।
कुंभ मेला प्रेमियों से निवेदन है कि परमात्मा धरती पर प्रकट हो चुके हैं। कुम्भ में नहाने से कितने जीवों की हत्या होती है और इसका कितना पाप लगता है मनुष्य को। इसलिए तत्वदर्शी संत का सत्संग सुनें जिससे पापों से बचा जा सके।क्या वस्त्र त्यागने से परमात्मा प्राप्ति होगी?
नंगे रहकर घूमना मनमाना आचरण है। शास्त्र अनुसार साधना से ही मोक्ष संभव है।अगर गंगा नहाने से मुक्ति होती तो उसमें रहने वाले जीव जंतु व मछलियों की मुक्ति पहले होनी चाहिए थी।
अमल आहारी आत्मा कबहु न उतरे पार!
साधु खुद भांग पीते हैं। नशा करते हैं। तो ये कैसे कुंभ की भव्यता बढ़ाएंगे।सूक्ष्मवेद में कहा है कि तीर्थ और धामों पर जाने से कोई लाभ नहीं है। असली तीर्थ तत्वदर्शी सन्त का सत्संग है।